Mrityu in Shastra – Shastri Jagdish Tripathi | Wide Angle with Ashok Vyas

0:02स्वागत करते हुए एक विशेष महत्वपूर्ण विषय

0:05की तरफ आज हम चर्चा करने वाले हैं

0:07शास्त्री जगदीश त्रिपाठी जी के साथ विजय

0:09पर बात करने से पहले आपका स्वागत नमस्कार

0:27[संगीत]

0:38मृत्यु हम सभी मृत्यु से कहीं एन कहीं

0:42भयभीत रहते हैं हमें कोई इस जीवन को

0:47छोड़कर जाना चाहता नहीं

0:53जब हमारे अपने हमारे बंधु बांधव हमारे

0:57मित्र हमारा बहुत आत्मीय

1:01मनुष्य चला जाता है तो जो स्थिति उत्पन्न

1:05होती है उसे स्थिति का सामना करने की

1:08दृष्टि से हमारे शास्त्र क्या कहते हैं

1:10इसके बारे में शास्त्रीय करने के लिए

1:12विशेष रूप से उनसे आग्रह किया तो आपका

1:14धन्यवाद करते हुए पहले हम जनरल बात अगर

1:17करते हैं तो मृत्यु के संदर्भ को लेकर

1:20शास्त्र क्या संकेत देते हैं

1:27मृत्यु का जब नाम आता है

1:32तो हम सबको इंक्लूडिंग में मेरे सहित

1:36ऐसे लगता है की सब समाप्त

1:41वास्तव में

1:43वह समाप्ति नहीं

1:46यात्रा का आरंभ है

2:00भगवान श्री कृष्ण को स्मरण करते हुए यदि

2:04हम भागवत गीता की तरफ चलें तो भगवान श्री

2:07कृष्ण जो कहते हैं मृत्यु के संदर्भ में

2:11वह कहते हैं की वह मृत्यु इस तरह जैसे कोई

2:14व्यक्ति

2:15एक पुराने वस्त्र को छोड़ता है

2:19और नए को पहनता है

2:22इसी तरह

2:25हम आप या हमारे अपने या जिनके हम अपने हम

2:30सब

2:32अपने पुराने शरीर को छोड़ते हैं और फिर

2:36नवीन को परिधान कर लेते

2:39यह कैसे होता है वह फिर कभी संदर्भ में

2:42चर्चा हो सकती है और शास्त्र उसे विषय में

2:44क्या कहते हैं उसे बारे में तो चर्चा कर

2:46लेंगे पर भगवान श्री कृष्ण जो भागवत गीता

2:50में कहते हैं तो वह कहते हैं की

2:52मृत्यु

2:54है नहीं

2:56सिर्फ

2:58वस्त्र बदलने जैसा एक वो है वो कहते हैं

3:01की आत्मा की मृत्यु नहीं है और यह चिंतन

3:05करने जैसा विषय हम सबको हमें लगता है की

3:08मैं मतलब एक शरीर

3:11और मैं जो इसमें हूं पर वास्तव में कृष्ण

3:14कहते हैं की

3:15मैं हम जिसे कहते हैं मैं और आप बात करते

3:18हैं तो मैं जब मैं अपने आप को संबोधित

3:20करूं मैं कहूं

3:23तो मैं कौन मैं हाथ

3:27तो नहीं मैं हाथ तो नहीं हूं हाथ मेरा

3:34तो हम कहेंगे नहीं सर में नहीं हूं सर

3:38मेरा है

3:40तो शरीर का कौन सा अंग मैं हूं

3:43समस्त शरीर के अंग मेरे हैं और समस्त शरीर

3:47मेरा है तो इस बात से यह स्पष्ट हुआ की

3:51जिसका शरीर है वह मैं हूं

3:55जो इस क्षेत्र का kshetradhipati है

3:57क्षेत्र ग जिसको भगवान श्री कृष्ण गीता

4:00में कहते हैं की kshetragya तो जो इसका

4:04मलिक है इस शरीर का इन समस्त अंगों का जो

4:08मेरी आंख की आंख है जिसके होने से आंख

4:12देखती है यह एक यंत्रवत है जिसके होने से

4:16मैं बोलता हूं वाणी की जो वाणी है

4:19आपकी जो आंख है कान का भी जो कान है वह

4:23वास्तव में मैं हूं और वह जो मैं हूं वह

4:28मैं इस शरीर को धारण करने से पहले भी था

4:32शरीर धारण करने के बाद भी मैं अभी हूं

4:36और शरीर की जो परिवर्तन होते हैं यात्रा

4:40है कुमार अवस्था बाल्यावस्था

4:43युवावस्था वृद्धावस्था इन समस्त अवस्थाओं

4:48में शरीर बदला

4:49पर मैं नहीं बदला मैं वही हूं जो कभी एक

4:55छोटे से शरीर में हुआ करता था

4:57हम सब जब जन्मे तो हम अपनी मैन की दो

5:02हथेलिया में पूरे के पूरे समा जया करते द

5:06वह हमारा शरीर इतना छोटा था तो वह मैं ही

5:11था

5:12या उसे शरीर में मैं था

5:15वास्तव में मैं शरीर में था उसे शरीर को

5:19मैंने इसी वाले जीवन में छोड़ा उसे शरीर

5:24की जगह दूसरा शरीर

5:27आया पर यह जो क्रम हुआ ये जो यात्रा हुई

5:31शरीर बदलने की

5:33स्लोली स्लोली हुई मुझे स्वयं को नहीं

5:36मालूम पड़ा की कब मैं यदि मृत्यु का है

5:40शरीर के जाने को तो कहना चाहिए की मेरा

5:43मैं वो वाला शरीर वाला मैं कम मार गया हम

5:47सब इसी जीवन में यदि शरीर के त्यागने को

5:51मरना कहते हैं तो कई बार मार चुके हैं और

5:55अभी भी इसी जीवन में हम मरेंगे शारीरिक

5:59ताल पर

6:00पर हम क्या मार गए नहीं तो इसीलिए यह जो

6:04मैं हूं और जो मेरा है शरीर तो भगवान श्री

6:08कृष्ण जब यह कहते हैं की आत्मा का जन्म

6:11नहीं होता और जिसका जन्म नहीं होता उसकी

6:14मृत्यु नहीं होती तो atmanajan में कभी

6:18देह जन्म पाए आत्मा नम्रता कभी देह मार

6:22जाए

6:25और जो मैं के संबंध में एक

6:30धरना हमारी रहती है वह संकुचित है जो

6:36शास्त्र इतने विस्तृत रूप से

6:38आपके जीव के होने की बात करते हैं वह

6:42हमारे अनुभव में होते हुए भी नहीं रहता है

6:45हम लोग अपने को शरीर मैन कर ही जीते हैं

6:47और जब

6:50किसी का dehroop में

6:53हमारे पास

6:57निष्क्रिय हो जाते हैं nishpraan हो जाते

6:59हैं तो वह जो बिच्छू है वह बड़ा सहयोग

7:03होता है उसे तरफ जाने से पहले की उसे क्षण

7:05को कैसे

7:07संभल उसमें बनाया रखा जा सके कैसे आप किसी

7:10की

7:11शनिदेव में हो तो उनको सांत्वना दे सके

7:14उसे तरफ जाने से पहले ये जो बात आपने कई

7:16लोगों की महत्वपूर्ण बात है की

7:19अनवरत है यानी मृत्यु नहीं होती है तो हम

7:24अपनी पहचान जैसे करते हैं वो एक मेंटल

7:27कंडीशनिंग जैसी हो जाती है की मैं इतना ही

7:30लिमिटेड हूं और ये नहीं है तो फिर मैं

7:32नहीं हूं ये धारा बदली कैसे जा सकती है और

7:37माफ करें बड़े-बड़े महात्मा भी इस धरना

7:40मैं वहां से अनुभूति के साथ नहीं जी रहे

7:43ऐसा अनुमान लगता है जो आप का रहे हैं जैसे

7:47की शास्त्र में आधार लेकर आपने भगवान श्री

7:50कृष्ण के सैंड से जो बात आपने कही है वहां

7:53से अगर कोई

7:56जीवित होगा तो वो मुक्त रहेगा हमेशा हम तो

7:59देखते हैं सभी लोग चिंता में तरह-तरह की

8:02एक होल में है की मैं ये भी बना लूं वो भी

8:06बना लूं इत्यादि तो

8:11अभी जो चर्चा हो रही थी मैं बात तो कर रहा

8:15हूं पर क्या मैं इसी ब्रह्मज्ञान में जीता

8:17हूं एक अलग विषय है जैसा आपने कहा मैं

8:21आपकी बात का अनुमोदन करता हूं सब लगभग उसी

8:24सेक्सी में दायरे में जीते हैं मुझे कबीर

8:26का एक वचन याद आया

8:37परमात्मा है उसको जानने का तो अभी मैं जीव

8:41भाव में हूं मैं सीमित हूं मैंने समझ लिया

8:43की मैं यह हूं

8:45तो यह जो simitta है वह असीम से हम कैसे

8:49जुड़े और कैसे हमें पता तो कबीर ने एक जगह

8:52ऐसी कहा की हेरात हेरात ही सखी

8:58रहा कबीर हारा

9:01बूंद समानी समंद में

9:04शकित हरि जाए इसको दोनों तरह से आप समझ

9:08सकते हैं हम समझ सकते हैं की मैं मतलब

9:11बूंद

9:12और

9:14परमात्मा सागर

9:17मृत्यु यह है की बूंद

9:21खोजने चली परमात्मा को या सागर को अपने

9:25मूल स्रोत को और उसने छलांगा लगाई सागर

9:30में पहुंची

9:35है तो आप एक दृष्टि से का सकते हैं बोन

9:37मार गई पर वास्तव में बूंद मारी क्या नहीं

9:41वह जो सीमित थी वह असीमित के साथ मिलकर वह

9:46विराट हो गई वह सागर हो गई

9:49समुद्र में सॉकेट हेरी जाए तो इसको यूं भी

9:53हम समझ सकते हैं की वह जो jivatmaon वह जो

9:57सीमित थी या हम जो सिम द हम उसी अपने मूल

10:01स्रोत परमात्मा में मिल गए तो वो हम एक हो

10:04गए पुनः और या फिर मैं कभी कभी ऐसे सोचता

10:08हूं हम यूं मैन सकते हैं की बूंद मैं जो

10:14तत्व है तो हमारी वैदिक सनातन संस्कृति जब

10:17कहती है और यह कहती नहीं यही परम सत्य है

10:20तत्वमसि वह तत्व तुम वही हो

10:26तो हम 80 तक तुम वही हो या फिर हम कहते

10:31हैं सोहम मैं वही हूं

10:38की मैं तो उसका अंश हूं

10:43गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा की ईश्वर

10:49का अंश है और परमात्मा अविनाशी है तो यह

10:52भी उससे मिलने के बाद अविनाशी इसका नाश

10:55नहीं हो सकता

10:58अभिप्राय है और हम ये समझे की वह जो

11:01जीवात्मा जो एक शरीर में रहा करती थी चाहे

11:04वो मेरे एक बहुत घनिष्ठ संबंधी वह भी

11:07शारीरिक ताल पर कभी मेरी मैन आपकी माता जी

11:11हमारे भाई बंधु या हम सब उनके शरीर अलग द

11:15फिर बदलते गए फिर वृद्धावस्था को प्राप्त

11:17हुए

11:21यहां यह

11:23बदलते गए इसी तरह वह एक जगह पहुंच करके वह

11:27फिर बहुत वृद्धि शरीर या जो एक शरीर है

11:31उससे मुक्त होकर खेत होना सूक्ष्म हो जाते

11:34हैं तो शास्त्र जी बात से मुझे यक्ष

11:38प्रश्न वाला संदर्भ भी याद आता है जिसमें

11:40आ संसार में सबसे बड़े आश्चर्य रूप में

11:43युधिष्ठिर बताते हैं की हम देख रहे हैं

11:46हमारे आने पहले वाले

11:48जाते जा रहे हैं लेकिन हमें लगता है की हम

11:51कभी जाएंगे नहीं ये

11:54क्या है की कोई भी ऐसा

11:57नहीं मानकर चल रहा होता है समानता है की

12:00ये देर छूट जाएगी उसको लगता है ना हमेशा

12:02बना रहने वाला हूं तो ये अमृत्व का जो एक

12:05भाव है वो वैसे सबके अंदर सजा है जो आप

12:07पहले का रहे द अगर वहां से हम जोड़ कर

12:09देखें तो किसी स्टार पर शायद कन्फ्यूजन हो

12:13गया है बाकी हम मानते तो अपने को आत्माएं

12:15क्योंकि हम मानते हैं की हम कभी मरने वाले

12:17नहीं समानता पर अब हम दूसरे संदर्भ की तरफ

12:19चले जाते हैं जहां से आप भी निकले हैं मैं

12:22भी निकाला हूं हमारे सभी दर्शन निकले

12:24होंगे क्योंकि ऐसा तो कोई परिवार नहीं

12:27होगा एक मुझे कथा याद आती बहुत सांगरी में

12:29आपके साथ में भगवान बुद्ध के संदर्भ से है

12:32वो किसी का पुत्र dayashan के बाद में वो

12:35पहुंचेगी इसको आप जीवित कर दें तो

12:37उन्होंने कहा आप एक ऐसे घर से आता लेकर ए

12:39जाओ जहां पे कभी मृत्यु नहीं हुई हो फिर

12:42वो शाम को वापस आते हैं तो उनको बोध हो

12:44जाता है की ये ऐसा कोई घर है ही नहीं जहां

12:46से कभी कोई गया नहीं हो पर जब कोई चला

12:50जाता है दो प्रकार की स्थितियों रहती है

12:52एक तो है की शरीर प्राकृतिक क्रम में

12:55उसमें वृद्धावस्था को प्राप्त करके कोई

12:56गया है एक सामूहिक हो जाता है कभी कोई

13:00एक्सीडेंट हो गया आया इन दोनों में कुछ

13:02घटनाएं हमारे इंडियन अमेरिकंस के मध्य में

13:05भी हुई हैं तो युवा अवस्था में कोई बालक

13:08के चले जाने से तो माता पिता के लिए वो

13:11एकदम अन से स्थिति हो जाती है तो आप बताएं

13:15की

13:15दोनों स्थितियों में जो दुख है वो तो अपने

13:21स्थान पर गहराई होता है पर

13:25क्या शास्त्रीय शब्द ऐसे हैं जो ऐसे समय

13:29में स्मरण करके मनुष्य अपने आप को या अपने

13:33बंधु बांधों को थोड़ी शक्ति उन तक पहुंचा

13:38सकता है तो एक संस्मरण मुझे आता है अभी

13:42पिछले दिनों का है

13:43एकदम पति ने मुझसे एक प्रश्न किया इसी तरह

13:47का बहुत उनके घर में बालक का देहांत हुआ

13:52बहुत युवा बालक

13:55और स्वाभाविक है की यह हम संसार में रहते

13:58हुए जीव हैं तो यह होता है की

14:02माता-पिता जाते हैं बच्चों के सामने वो

14:05सहज नेचुरल प्राकृतिक प्रक्रिया है पर

14:08पिता और माता के होते जब बच्चे जाते हैं

14:11तो वो दिक्कत है और उसके लिए सांत्वना

14:14कैसे

14:15तो वहां बड़ी मुश्किल होती है तो उनका एक

14:19प्रश्न मुझसे था की शास्त्री की

14:22हमने क्या पाप किया था की हमें ये कष्ट

14:26भोगना पड़ा

14:28और मैं तब

14:31उनसे ज्यादा परिचित तो नहीं था पर मैं

14:34जानता था की वह सज्जन व्यक्ति

14:37है और वह जो बालक गया वह भी सज्जन था बहुत

14:40बढ़िया था कोई उसमें अवगुण दुर्गुण

14:42इत्यादि नहीं द

14:44तो समय मैंने स्वयं भगवान को ही चिंतन

14:47किया की नहीं क्या शांत हो तो एक जगह

14:50भगवान श्री कृष्ण ने भागवत गीता में

14:52अर्जुन को कहा उसे उनके प्रश्न का उत्तर

14:56दिया अर्जुन पूछते हैं कृष्ण से की ही

14:59माधव आप बताएं कोई साधक कोई तपस्वी और कोई

15:04बहुत सज्जन व्यक्ति जीवन में साधना करता

15:08है तब करता है और शुभ कर्म करता है

15:11उसका मोक्ष हो

15:18भगवान शंकर फिर से जन्म ना पड़े फिर मरना

15:21पड़े उसका मोक्ष हो और वह मोक्ष को

15:24प्राप्त नहीं कर पता और उसकी साधना बीच

15:26में अधूरी रह जाती है और वो मृत्यु को

15:28प्राप्त हो जाता है तो या फिर वो योग

15:31भ्रष्ट हो जाता है मतलब साधना में बीच में

15:34कोई कारण से उसकी साधना सिंह उसका क्या

15:37होता है

15:40तो अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान

15:44श्री कृष्ण ने कहा की ही अर्जुन ऐसी जो

15:47जीवात्मा है उसको पुनः संसार में आना

15:51पड़ता है लेकिन उसको सूची नाम श्री मातम

15:54गह योग प्रस्तुत इज्जत ऐसा कृष्ण का वचन

15:58है की सूची नाम पवित्र और श्रीमान

16:02सज्जन व्यक्तियों सज्जन माता पिता सज्जन

16:05परिवार में उसे पुनः जन्म लेकर के आना

16:08होता है और फिर वह जो उसकी जन्म की पूर्व

16:11जन्म की जो यात्रा बाकी रही है जो भी है

16:14उसको अपने कर्मों को जो भी थोड़े कर्म

16:17बंधन उनको काट करके फिर वो शीघ्र अपना

16:19मोक्ष को प्राप्त हो जाता है उसकी साधना

16:22तो लगभग पूर्ण हो चुकी होती है

16:24तो मैंने उनसे यह कहा

16:27जो भावनात्मक रूप से चाहे तो आप शाना के

16:30वचन कहिए लेकिन कृष्ण भगवान की इन वचनों

16:33को मैंने उन्हें कहा मैंने कहा की आप से

16:37कोई अफराद पाप या कोई दोष नहीं है ये उसका

16:40परिणाम नहीं है वह जीवात्मा साधक और सज्जन

16:44जीवात्मा थी और ऐसे jivatmaen इसी सज्जन

16:48किसी श्रेष्ठ व्यक्ति का चयन करती हैं

16:51उनके घर आकर अपने कर्म बंधन को पूर्ण करके

16:54फिर वो अपनी यात्रा में निकल जाती हैं तो

16:57मैं ये कहूंगा की घटना तो घाटी है पर उसे

17:01पवित्र आत्मा ने जो आत्मा थी उसने आपका

17:06चयन किया क्योंकि आप सज्जन लोग हैं आपसे

17:08और मैंने कहा की मैं इस बात के लिए

17:11शोर हूं की आपके से अपने जीवन में कोई

17:15अफराज कोई

17:16पाप कोई ऐसा नहीं हुआ होगा ऐसा मुझे लगता

17:19है तो उन्होंने कहा हान शास्त्री जी ऐसा

17:21हमने अपने पूरे जीवन में बड़ी सुचिता के

17:24साथ बड़ी संस्कारों के साथ बहुत अच्छे ऐसा

17:27जीवन दिया तो दो प्रश्न आप पुरी बात करें

17:30तो मैं ये समझता हूं की ऐसे समय में हम

17:34अपने जीवन में या अपनों के जीवन में या

17:37व्यक्तियों की जीवन इस तरह की सकारात्मक

17:40दृष्टि को अपनाते हुए और उसको स्वीकारना

17:44तो पड़ेगा मैत्री शरण गुप्त का एक वचन

17:47उनकी दो लेने हैं वो कहते हैं जैसे बाईट

17:50कल बिता देना ही होगा जो कुछ देगा देव

17:55हमें लेना ही होगा तो देव प्रकृति जो हमें

17:59देगी हमें लेना है अब उसको किस तरह से

18:03लेना है यह हमें चिंतन करना है तो मैं

18:06कहूंगा की जैसे आपने कहा आता और सबके जीवन

18:11में हर तो ऐसी घटना किसी के साथ ना घाटे

18:15बिल्कुल यदि घटती है तो कहीं ना कहीं हमें

18:18भगवान का आश्चर्य लेकर के और उसको किसी

18:21तरह से अपने जीवन में परिवार के जीवन

18:23संबंधियों के जीवन में सकारात्मक हो करके

18:26उसे जीव आत्मा के प्रति प्रार्थना करते

18:29हुए अपने जीवन को आगे ले जाने की कोशिश

18:31आगे जाने का नाम जीवन है ऐसा कहते भी रहे

18:34हैं और आवश्यक भी है और बहता हुआ पानी

18:38निर्मल रहता है ये भी हमने सुना है जीवन

18:40बेहतर है उसे दृष्टि से जो अपने एक शब्द

18:44का प्रयोग किया योग भ्रष्ट उसको थोड़ा सा

18:47और स्पष्ट यदि करें आप और साथ ही

18:51ऐसे संकेत की हम योग vrisht हो रहे हैं की

18:56नहीं हो रहे हैं इसका परीक्षण भी करें और

18:58प्रयत्न भी करें की यानी कहीं ना कहीं जब

19:02ये कहा जाता है की सभी को योगी बन्ना है

19:03उसका सिर्फ ये शारीरिक अभ्यास वाले योग

19:06सुनो के साथ नहीं हो के और किस तरह से

19:09जैसे आपने कहा की हम जो घटित होता है उसको

19:12अपनाते कैसे हैं तो योग

19:16भ्रष्ट एन हो योगी हो उसमें कहीं एन कहीं

19:19यह संकेत भी ए जाएगा की कैसे हम अपना

19:22कोशिश करता हूं अपने आप को जैसे समझता हूं

19:26तो जैसे समझिए मैं अपने घर से अभी आईटीवी

19:30के स्टूडियो आया और आईटीवी स्टूडियो आते

19:34हुए मैं एक मार्ग लेकर के यह रास्ता है

19:36इतने मिनट में इतनी मिले दूरी पर है

19:40पर मैं किसी चीज में लग गया किसी ख्याल

19:43में लग गया या किसी का फोन ए गया कुछ हुआ

19:45और मैं एग्जिट मिस कर गया

19:48तो आगे चला गया तो आप मुझे जब पहुंचना था

19:52जहां पहुंचना था वह मेरी यात्रा फिर आगे

19:55बढ़ गई फिर मुझे दूसरी जगह से फिर मोड

19:57करके फिर मुझे दूसरा एक रास्ता लेकर के

20:00पुनः फिर उसमें आकर

20:04एक व्यक्ति जो साधना कर रहा था और वह

20:07पहुंचने वाला था बस पहुंच ही गया था उसका

20:09परमात्मा से मिलना या जो उसकी योग का मतलब

20:12होता है जोड़ना की वह जुड़ गया था और उसका

20:15जो जन्म रन का जो चक्कर था वह समाप्त होने

20:18वाला लेकिन वो कोई किसी कारणवश वह चुप गया

20:22चुप गया तो फिर उसको पुनः वापस आने के लिए

20:26एक दूसरे मार्ग का मतलब फिर से जीवन लेकर

20:28के फिर पुनः आपने उसे कर्म को या उसे

20:31यात्रा को पूरा करना है और फिर से वो

20:33पहुंचेगी तो मैं मानता हूं योग भ्रष्ट का

20:35मतलब यह है की अपनी यात्रा की पड़ाव से

20:38पहले ही

20:40मार्ग से

20:41च्युत हो जाना और फिर पुनः उसके लिए दूसरे

20:45मार्गों से आकर के फिर पुनः वहां जोड़ना

20:47इसको मैं योगेश समय का सम्मान करते हुए भी

20:51और

20:52जीवन में जो समय हमारे पास है जो अवकाश है

20:55जो अवसर है उनका सम्मान करते हुए भी हम

20:57आगे बढ़े तो अंतिम प्रश्न के रूप में आपने

21:01बताया जो गणतंत्र और जहां पहुंचना था वहां

21:05नहीं पहुंचे उसमें एक बात हम भी मानकर चले

21:08जाते हैं की पता है की गंतव्य क्या है कई

21:11बार जीवन में वो स्पष्ट होता रहती पर उसके

21:13बारे में भी शास्त्र बहुत संकेत करते हैं

21:15और एक जो मृत्यु महामृत्युंजय मंत्र है ओम

21:18त्र्यंबकं या महेश सुगंधिम पुष्टिवर्धनम

21:20urvarukami वंदन

21:23इसकी व्याख्या करते हुए जीवन के लक्ष्य के

21:26बारे में जो बात कही गई है वो थोड़ा आपके

21:29का करके बताएं तो इसमें एक प्राकृतिक फल

21:32है जिसको हम खरबूजा कहते हैं या उसको

21:37अलग-अलग नाम दे जा सकते हैं उसको कई लोग

21:39पर मैंने पर वाटरमेलन नहीं अलग ढंग से फल

21:42होता है तो ऐसे इसकी जो शाब्दिक व्याख्या

21:46है वह इस तरह से है की उसमें प्रार्थना की

21:48गई है की मैं उन त्र्यंबक महादेव का यजन

21:52करता हूं

21:53वो मेरे जीवन में इस तरह की

21:57अमृत्व को प्रदान कर दें की उसके आते ही

22:01या मेरे जीवन में उसे तरह की का ज्ञान

22:04मुझे प्राप्त हो जाए की मैं समस्त मोह

22:07इत्यादि चिंता शोक को durvyadiyon से और

22:11दूरदर्शन से उसे तरह मुक्त हो जाऊं जैसे

22:15वह जो खरबूजा पकाने के बाद अपने आप ही

22:19डेंटल से अलग हो जाता है उसको तोड़ने की

22:22आवश्यकता नहीं होती है जब उसमें वो पकता

22:25है वह रस पूर्ण हो जाता है तो अपने आप ही

22:28वह डेंटल से अलग होता है इसी तरह मैं भी

22:30ईश्वर की कृपा से मेरे जीवन में वह अमृत

22:34तो मुझे प्राप्त होगा वह ज्ञान मुझे

22:36प्राप्त हो वह कृपा प्राप्त हो की मैं

22:39संसार की दिव्या मोह से मोह से चिताओं से

22:42vyadhmiyon से रोगों से मुक्त हो जाऊं

22:44आपके कृपा से

22:46तो यह आपकी कृपा से मुक्त होने वाली जो

22:49बात है उसमें सर्ज रूप से जीवन को अपना कर

22:51जो पूर्णतः पूर्णता को प्राप्त किए बिना

22:55ये जो प्राणों का आधार मिला हुआ है वो छूट

23:00नहीं ऐसी प्रार्थना

23:03मंत्र में जो है उसके साथ ये भी संकेत

23:07कहीं ना कहीं आता लगता है की हम पकड़ कर

23:11रखने का जो हमारा आग्रह है उससे थोड़ा

23:13मुक्त होंगे तभी मुक्ति हमारे लिए सुलभ

23:17होगी जैसे सांसों को भी इस तरह से

23:19व्यवस्थित किया गया है की आप

23:22सांस लेते हैं मगर आप छोड़ेंगे नहीं तो

23:25फिर कम खत्म हो जाएगा पर अब कम चलता रहे

23:28उसे दृष्टि से आपको बहुत आभार जो संबल और

23:32सांत्वना की दृष्टि से आपने शास्त्रीय

23:34दृष्टि अंत तक बड़े सरल शब्दों में

23:36pahunchaiye उन्हें मंगल कामनाओं की सर

23:39शास्त्री जगदीश त्रिपाठी जी वैदिक स्कॉलर

23:44सेवा जो भारतीय संस्कारों के साथ जुड़ी

23:49हुई है उसमें भारत से दूर आकर निष्ठा से

23:52कई वर्षों से समर्पित रहे हैं उनका पुनः

23:56मंगल कामनाओं के साथ आभार और आपका हमारे

23:58साथ जुड़ने के लिए आभार अशोक व्यास होना

24:00चाहिए

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