नमस्कार मैं अशोक व्यास वाइट एंगल वि अशोकव्यास में हमने जो श्रंखला भारत के संतोंके ऊपर थोड़ा बहुत चिंतन मनन करने की शुरूकी है उस क्रम में आज हम बाबा तुलसीदास जीके बारे में बात करेंगे चित्रकूट के घाटपर भई संतन की भीड़ और आगे क्या हैबताएंगे शास्त्री जगदीश त्रिपाठी जी तिलककरें रघुवीर जी क्या है वोतुलसीदास चंदन की से तो ऐसा है चित्रकूटके घाट पर भई संतन कीभीर तुलसीदास चंदन गिसत तिलक देही रघुवीरक्या बात है और यह प्रसंग ऐसा है किगोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी केदर्शन किए हनुमान जी से प्रार्थना की किप्रभु मुझे रघुनाथ जी के दर्शनकराइए तो हनुमान जी ने कहा कि आप चित्रकूटमें मंदाकिनी जो गंगा जी हैं उन मंदाकिनीके किनारे पर यहां पर वो आएंगे मिलेंगे तोदेख तो तुलसीदास जी बैठे हुए थे और देखाकि दो धनुष बाण धारण धार धर कर के वहां सेदो राजकुमार वहां से निकले और तुलसीदास जीने उनसे चर्चा भी की लेकिन वो चले गएफिर दिन भर बीत गया तो हनुमान जी सेतुलसीदास जी ने कहा प्रभु वह तो दर्शन तोहुए नहीं बोले आए थे तुम पहचान ही नहींपाए तो उन्होंने कहा अब अब कैसे होगा तोउन्होंने कहा कल फिर आएंगे तो तुलसीदास जीवही मंदाकिनी किनारे गंगा किनारे बैठे थेऔर हनुमान जी ऐसा कहते हनुमान जी तोताबनके एक पेड़ पर बैठ ग और फिर से भगवानराम जी आए बालक के वेश मेंऔर तुलसीदास जी कहा बाबा तो जरा चंदन दोतो तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे उन्होंनेचंदन दिया भगवान जी को और भगवान जाने हीवाले थे तुलसीदास जी फिर भी नहीं पहचानसके बालक के रूप में तो हनुमान जी ने तोतेबन कर के पेड़ पर से कहा चित्रकूट के घाटपर भई संतन की भीर तुलसीदास चंदन तिलकदेही र बात हैसे भाई ये है रघुवीर तोतुलसीदास जी को भगवान श्री राघवन सरकार केबाल रूप में दर्शन हुए ये इस तरह की कथाप्रचलित है तो जब हम तुलसीदास जी का स्मरणकरते हैं तो सीधा-सीधा रामचरित मानस हमारेआसपास आ जाती है और अखंड रामायण के पाठहोते हैं राम जी की लीला के साथ में जोसबका एक तारतम्य है मर्यादा पुरुषोत्तमराम जीऔर भारतीय संस्कृति में राम जो नाम हैउसकी महिमा तो अपार है ही है पर आज हमसीधे-सीधेतुलसीदास जी के जीवन के बारे में आपसेथोड़ा और जाने और रामचरित मानस के अलावाभी अन्य रचनाएं भी उनकी उसकी तरफ भीजाएंगे पर प्रारंभिक काल उनका जो था तब तोव इस प्रकार का नहीं था कि वह बड़ेसमर्पित भक्त हो ऐसा नहीं था गृहस्थ थे जोगोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन चरित्र केसंदर्भ में अ जो संतों के द्वारा मुझे जोपता चला है या उनकी जीवन जीवनी जो रामायणजी में रामचरित मानस में लिखी हुई है उसके अंतर्गत जो जो मुझे ज्ञात है उसमें यहकहा हम मैं भी उसी क्षेत्र से लगभग जन्माहूं बॉर्डर का है मैं पन्ना से हूं और वहगोस्वामी तुलसीदास जी का जो जन्म स्थान हैइस समय वह स्थान उत्तर प्रदेश के बांदाजिले के अंतर्गत एक गांव है राजापुर जी तोवोह गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मस्थलीहै और ऐसे कहते हैं कि उनके पिता का नामआत्माराम दुबे था और माता जी का नाम थाहुलसी जी तो ऐसे के तुलसी की जय जय तो लसीदेवी उनकी माता श्री का पूज्य माता श्रीका नाम था और पंडित आत्माराम दुबेगोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के पिता श्रीथे तो कहते हैं कि उनका जन्म उस परिवारमें संभ्रांत ब्राह्मण परिवार में उनकाजन्म हुआ कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदासजी 12 महीने मां के गर्भ में रहे अच्छाऐसा कहते हैं और उनका जब जन्म हुआ तो कहतेवो रोएनहीं वो रोए नहीं वो जब जन्म है तो जन्मके साथ ही उनके मुख से राम का शब्द निकलाभगवान का नाम निकला राम दूसरी किंबदंती हैया सत्य घटना जो भी होगी पर ऐसा कहा जाताहै कि जन्म के समय ही उनके मुख में 32 के32 दांत अच्छा थेऐसा तो ये जो 32 दांत के साथ और इतने समयके बाद उनका जो जन्म हुआ था तो परिवार केजनों ने या लोगों ने यह माना कि यह जोबालक है यह कुछ विलक्षण और वो यह भी कहाजाता है कि उनका जब जन्म हुआ था तोस्वाभाविक है कि वोह न महीने के नहींजन्मे थे वह तीन महीने और गर्भ में रहे तोऐसा कहते हैं कि जैसे वो वो समझो कि पाचवर्ष का बालक जैसे होता इतना विशाल साउनका शरीर था 32 दांत थे रोए नहीं रामनिकला ये ये कहावतों में कथाओं मेंप्रचलित है तो परिवार के लोगों में यह लगाकि के बालक अमंगल कारी हो सकता है यह होगातो उनकी जो माता थी हुलसी देवी उन्हेंअमंगल के भय के कारण ये लगा कहीं कुछ इसबालक के साथ परिजन या कोई अनिष्ट ना कर देया जो भी है तो उनकी दासी थी तो उसका नाममुझे भूल गया पर मैंने पढ़ा था कहींचिनिया कुछ नाम करके उनकी दासी थी जो उनकेघर में परिचर्या करती होंगी तो उन्हो नेतुलसीदास जी को कहा कि तू इस बालक को लेकरअपनी ससुराल चली जा तो वह जो महिला थी वहउनको लेकर के चली गई और इधर कहते हैं किउनकी माता का देहांत दूसरे तीसरे दिन माताका देहांत हो गया और फिर यह तुलसीदास जीको उस महिला ने पालन पोषण किया कुछ वर्षके थे औरइधर ऐसी कथा है कि भगवती पार्वती जगदमको यह की कृपा हुई और तुलसीदास जी वहांअपने बालपन में ही उनके गुरुदेव थे स्वामीनरी हरिया नंद जी तो उनकी शरण में आए किसीसंयोग से और फिर वह वाराणसी चले गए विद्याअध्ययन के लिए विद्या अध्ययन किया विद्याअध्ययन के बाद फिर गोस्वामी तुलसीदास जीको लगा कि मैं अपने जन्म स्थान पर जाऊं तोकहते कि गोस्वामी तुलसीदास जी पुनः विद्याअध्ययन करने के पश्चात वाराणसी से अपनेराजापुर में आए तब तक इनके परिवार के सबलगभग परिवार नष्ट हो चुका था माता पहले हीचली गई थी तो सबका वो किया फिर इनका विवाहसंपन्न हुआ अच्छा अब तक का जो इनका जीवनहै उसके बारे में जो कुछ आपने पढ़ा उसमेंकहीं ऐसा संकेत आता है क्या कि इनकीअभिरुचि रचना धर्मिता जैसी प्रकट हो गई थीरचना धर्मिता में नहीं थी पर इन्होंनेअध्ययन तो किया जी वेद शास्त्रों का सबकाअध्ययन किया और अच्छे मतलब विद्वान तो थेतुलसीदास जी पर काव्य की उनकी धाराप्रस्फुटित तब तक नहीं हुई थी ऐसा ऐसा कहाजाता है जी तो वापस जब आए और वापस आए तोफिर परिजनों ने परिजनों ने जो भी हैं तोउनका विवाह संपन्न कराया और संपन्न करायाविवाह रत्नावली के साथ में वही आसपास केग्रामीण अंचल में उनका विवाह संपन्न हुआऐसी कहावत हैं कथाएं हैंकि गोस्वामी तुलसीदास जी का अनुराग उनकीजो भार्या थी रत्नावती उनके साथ खूबअनुराग था और होना चाहिए स्वाभाविक दंपतिकी तरह तो कथा हैकि एक बार रत्नावली अपनी मायके गई हुई थीउनके भ्राता लेकर गए थे और तुलसीदास जीअकेले थे घर में तो उन्हें अ उनके वियोगमें यह लगा कि मुझे तो उनसे जा मिलने जानाहै तो चौमासी की ऋतु थी बरसात खूब हो रहीथी एक नदी में बाढ़ आई हुई थी तुलसीदास जीने रात्रि मौसम खराब है बरसात है बाढ़ हैइसका ध्यान ना करते हुए और वहां पर अपनीससुराल जाने का निर्णय कर लिया ऐसा कहतेहैं कि नदी में बाढ़ आई ई थी एक मुर्दाबहर था उसी को नौका की तरह प्रयोग करकेनदी पार कर ली फिर उनके ससुराल में गए जोरत्नावली का घर था उस घर के बाहर आवाजलगाई किसी ने दरवाजा नहीं खोला क्योंकिमौसम बहुत खराब था बरसात बहुत थी तूफानआया हुआ था तो घर की छप्पर से एक सांपबड़ा भारी भयंकर सांप लटका हुआ था उसेरस्सी की तरह प्रयोग करके रस्सी समझ कर याप्रयोग करके उसका भय न करते हुए उसकोप्रयोग करके छप्पर पर चढ़ के और अंदर घरमें प्रवेश किया और जब इस तरह सेअर्धरात्रि में गोस्वामी तुलसीदास जी वहांपर गए और रत्नावली जी जो थी उनकी भारियाउन्होंने देखा कि यह ऐसी कठिन उसमें इतनाअनुराग मेरे से तो पर वो भी ज्ञानी थी याजो भी थी तो उन्होंने तुलसीदास जी को कहाकिकि आपको जिस तरह का अनुराग मेरी इस हार्डमास की काया के साथ है यदि इसका कुछ अंशअनुराग भगवान राम से हो जाए तो आपके जीवनका उद्धार हो जाता और तब तुलसीदास जी कोउनके इसी वचन से वैराग्य हुआ संसार केप्रति और वह जो अनुराग संसार से था वहअनंत अनंत गुना हो करके भक्ति के रूप मेंपरिणित होकर के भगवान श्री राघवेंद्रसरकार राम जी से हुआ और वही से तुलसीदासजी वापस यहां पर फिर देखते हैं वह जो एकजीवन में मुख्य परिवर्तन का मोड़ कह दीजिएउनके जीवनका थोड़ा वैराग्य अपनी भार्या रत्नावली जीके वचनों से उनके अंदरहुआ लेकिन फिर हम फिल्मों में ऐसा होताएकदम कट टू फिर वहां आ ग कि वो वहां परबैठे हैं और रचना हो रही है पर इसके बीचमें भी बहुत कुछ घटनाएं घटित हुई होंगीउन्होंने ढूंढा होगा कोई गुरु की तलाश भीरही होगी या ऐसे जो इस मार्ग में उनकोथोड़ा दीक्षित करें देखिए ये है कि मैंमैं जो अ मैं जो सोचता हूं तो ये जो घटनाघटी गोस्वामी तुलसीदास जी के साथ मेंऐसा उनका जो जन्म का सन बताया गया है संवतवह संवत बताया गया है उनकी जीवनीमें1554 जी1554 विक्रम संवत जी तो यह कहा कि उनकाजन्म हुआ था 1554 में और वह भी कहा गया किशायद श्रावण शुक्ल की सप्तमी थी ऐसाकहा और उनका विवाह जो हुआ गोस्वामीतुलसीदास जी का अध्ययन के पश्चात जब ववाराणसी से लौटे तो विवाह की तिथि मितिबताई गई है15003 या84 तो ऐसे समझना चाहिए कि लगभग30 वर्ष के अंदर ही उनका विवाह हुआ ऐसाअध्ययन इत्यादि के बादऔर विवाह के तुरंत पश्चात ही उन्होंने यहघटना घटी जो रत्नावली जी ने कहामैं ये थोड़ा कुछ वर्ष में दो वर्ष में घहोग वर्ष के संबंध में कहूं कि इसके बारेमें अलग-अलग लोगों की अलग-अलग धारणा नजाने क्यों है जैसे आपने 1554 कहा कहींकहीं 1532 आता है कहीं कहीं कुछ लोग 1589भी कहते हैं पर हम 1554 मैं इसलिए कहूंगामैं क्योंकि जो मैंने रामचरित मानस मेंतुलसीदास जी की जीवनी है उसके हिसाब से यहहै और जैसे आपने कहा कि 1532 तो उनके देहत्याग की तिथि बताई गई कि 15001623 कहीं कहीं ऐसा लिखा ये बिल्कुल गलतहै इसलिए गलत है मेरे कहने से नहींगोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखितरामायण की एक चौपाई जिसमें तुलसीदास येचौपाई रामायण में लिखी है उसमें उन्होंनेकहा संवत1631 कहा कथा हरि पद धर शीष कि वह कहतेहैं कि मैं यह जो रामचरित मानस की लिखनाआरंभ कर रहा हूं संवत1631 में और जही दिन राम जन्म श्रुति गावऐसा लिखा है जिस दिन राम के जन्म की नवमीहोतीचैत्र शुक्ल पक्ष की नौवी तिथि1631 में से गोस्वामी तुलसीदास जी नेरामचरित मानस रामायण के लेखन का कार्यप्रारंभ आरंभ किया और फिर यह भी कहा गयाहै और वह चौपाई है मुझे एगजैक्टली अबचौपाई याद नहीं आ रही वह समापन की लेकिनयह चौपाई रामायण में लिखी है मैं बतादूंगा कभी तो उसमें लिखा है कि जिस दिनराम जी के विवाह का की तारीख की जो तिथिहै संवत के हिसाब से उस दिन गोस्वामीतुलसीदास जी ने रामचरित मानस का का लेखनकार्य पूर्ण किया सातों कांड उत्तर कांडसमाप्त किया और यह संवत 1631 में बाबा नेरामायण लिखनी आरंभ की अच्छ तो1633 में संपूर्ण किया ऐसा कहा गया है दोसाल सात महीने और 26 दिन रामचरित मानस केलेखन कार्य में गोस्वामी तुलसीदास जी कोलगे तो जैसे इसीलिए वो जो वाला मित है वोझूठ हो जाता है ठीक ठीक है आपने जो बतायामतलब ठीक है का अर्थ है कि आप जो कह रहेहैं उसको प्रामाणिक मानते हुए अ ऐसाअनुमान लगता है कि ये जीवन के उत्तरार्धमें हुआ उनका रामचरित मानस का इससे पूर्वकी भी कुछ रचनाएं होंगी जो बड़ी तो पूर्वकी है या या प्रथम की है लेकिन गोस्वामीतुलसीदास जी की रच मुख्य रचनाओं में जैसेएक तो हनुमान चालीसा उनका हनुमान जी कास्तवन है वह भी है औरएक है जानकी मंगल जी छोटा सा ग्रंथ जानकीमंगल राम लला नहस वो भी एक ग्रंथ है छोटाग्रंथ है फिर एक कवितावली है जी एकदोहावली है जी तो कवितावली एक विनयपत्रिका हां विनय पत्रिका विनय पत्रिकाकवितावली दोहावली राम लला नह छू जानकीमंगल और एक और है बरवेरामायण वो भीशायद संभवत तुलसीदास जी की रचना है औरएक जैसे उसमें एक और है किउन्होंने हनुमान जी के लिए हनुमान साठिका जैसा एक और ग्रंथ लिखा तो ये कुछ बहुतसंक्षिप्त में विनय पत्रिका के बारे मेंकुछ बताए यदि तो मुझे विनय पत्रिका केसंदर्भ में बहुत ज्यादा तो नहीं पर विनयपत्रिका भी जो है ना भगवान श्री राघवसरकार के विनय के पद है उसमें और उसमें भीलगभग लगभग रामायण की पूरी कथा की आवृत्तिजैसी है तो उसमें वो पदों में है छंदोंमें है विनय पत्रिका और जिसमें उनका एकप्रसिद्ध पद है विनय पत्रिका का पद ही हैयह जिसमें वह कहते हैं तू दयालु दीन हो तूदानी हो भिखारी हो प्रसिद्ध पात की त पापपुंज हारी ये विनय पत्रिका का है कि तुमदयालु मैं दन एक वो प्रसंग आता हैशास्त्री जी जिसमें कहते हैं तुलसी मस्तकतब नए जब धनुष बाण लो हाथ वो क्या प्रसंगहै वो प्रसंग एक्चुअली ऐसा कहते हैंकि वृंदावन में गोस्वामी तुलसीदास जी कोबांके बिहारी जी के मंदिर में गएऔर तो व तो भगवान श्री राघवेंद्र के भक्तथे तुलसीदास जी तो वहां पर गए तो उन्होनेने देखा कि भगवान श्री कृष्ण अपना बंसरीलेकर खड़े हैंतो तो इन्होंने तुलसीदास जी ने कहा किप्रभु मैंतो मैं तो आया हूं और आपको प्रणाम तो कईकई संतों में यह मतभेद है कई कई लोग कहतेहैं कि तुलसीदास जी ने ऐसा कहा भगवानकृष्ण को कि तुलसी मस्तक तबनवे आपने ये मुरलीहाथ में लोगे राम के स्वरूप में आप होगेतो मैं नबू नहीं तो नहीं लेकिन कहते ऐसानहीं है तुलसीदास जी ने ऐसा नहीं कहातुलसीदास जी ने ऐसा कहा कि कहा कहो छविआपकी भले बिराजे नाथ आपकी छवि को क्याकहूं आप कितने सुंदर लग रहे हैं कैसेविराजमान है प्रभु लेकिन तुलसी मस्तक तबनवे जब धनुष बाण लोहा लेकिन मैं तो तबआपको नूंगा जब धनुष बाण लेक राम के रूपमें आओगे संतों का मत ऐसा है कि नहीं ऐसानहीं है तुलसीदास जी ने ऐसे कहा कि कहाकहूं छवि आपकी भले विराजे नाथ तुलसी मस्तकनवतहै मैं तो नम ही रहा हूं आप यूं भी मेरेआराध्य यूं भी मेरे तुलसी मस्तक नवत हैधनुष बाण लेह हाथ मैं तो नम रहा हूं आपधनुष बाण ले लो प्रभु तो ऐसी कथाकही गई है तो भक्तों की जो एकरसमय संबंध की कथाएं सुनते हैं तो वहप्रेरक भी होती हैं वह रस सेआप्या भी कर देती है बातचीत के समापन पहलेरामचरित मानस के कोई चौपाइयां भी है सोरटेभी हैं दोहे भी हैं सोरठे जो है यह बड़ीएक दुरू यह समझिए चमत करने वाली एक विधाऐसा कैसे लेखन होता है कि आधी पंक्ति यहांसे शुरू होती है फिर पहले से पढ़ो ऐसा वोऐसा नहीं है वह सोरठा जो है ना सोरठे कोदोहेमें वह बदला जा सकता है तो पहली जो पंक्तिहै उसको पढ़ के और फिर दूसरी लाइन कीदूसरी पंक्ति पढ़ोगे तो फिर वो दोहा बनजाता है ऐसे छंद की रचना है तो सोरठे कोदोहे में बदला जा सकता ऐसा है वो तोमुख्यतः गोस्वामी तुलसीदास जी नेछंद औरचौपाई और दोहा इसमें लिखा तो मैं सोचताहूं कि मैं आपको दो चौपाई आप सुनाए एकचौपाई सुना देता हूं तो चौपाई तो सबको पताहै प्रसिद्ध चौपाई मंगल भवन अमंगल हारीद्रवहु दशरथ अजर बिहारी बिहारी और मैंसोचता हूं कि छंद सुनाऊ छंद में गोस्वामीतुलसीदास जी ने रामायण की महिमा के संदर्भमें बालकांड में लिखा कि रामायण क्या करतेहैं रामायण क्या है वह देखता हूं मुझेपूरा स्मरण होता है कि नहींमंगलकरण कलि मलहरनी तुलसी कथा रघुनाथकी गति कोरकविता सरित सी ज सरितपावनपाथकी भव गति सरितपावनपाथकी उसकी दूसरी दो लाइन मुझे थोड़ा विस्मृतहो रही है लेकिन ऐ कुछ है कि भंगभूतिमशान की सुमिरतसुहावनीपावनी प्रभु सुजस हा प्रभु सुजससंगति करति मति हो यही सुजस मनभावनी भ अंगभूति मशान की सुमिरतसुहावनीपावनी ये ये छंद है बहुत ही सुंदर बहुत हीसुंदर तो ऐसा होता है कि जो चौपाइयां हैउनमें कई चौपाइयां ऐसी है जो कोई सीख भीलेकर आती है हमारे लिए जिसको आप जीवन मेंकभी निर्णय लेते समय भी उनका स्मरण करेंतो उससे एक आलोक किरण निकलती है मैं दोचौपाई सुना देता हूं जी बहुत है गोस्वामीतुलसीदासजी विलक्षण है अद्भुत है और मैं कहूंगा किहमारे लिए यह भगवान की अनंत कृपा है किहमें तुलसीदास जी का रामचरित मानस इतनीसरल भाषा में उपलब्ध है येइसमें मैं एक तुलसीदास जी की रामायण केसंदर्भ में एक उनकी उनकी महिमा पर भी मैंएक वणी कवि द्वारा कही गई तो चार लाइनेसुना तो वो कहते हैं वैनी कविवेद मत शोध शोध शोध के पुराण सय वेद मतशोध शोध शोध के पुराण सय संत और असंत कोभेद को बताव तो कपटी कुरा ही क्रूर कलि केकुचा जीव कौन राम नाम ही की चर्चा चलाव तोबेनी कवि कहे मानो मानो हो प्रतीतयह पाषाण हृदय में कौन प्रेम उपजातो भारी भव सागर उतार तो कवन पार जो पे यहरामायण तुलसी नगाव क्या बात है क्या बातहै तो तुलसीदास जी का तो बहुत-बहुतकृतज्ञता वाला भाव सबके मन में जो भीथोड़ा भी उसका रस लेते हैं उनके आता ही हैसमय का सम्मान करते हुए एक चौपाई आप सुनारहे थे जो हां तो यह हैकि कर्म प्रधान विश्व रचराखा जो जस करही सो तस फल चाका यह है कियह संसार कर्म प्रधान है इसलिए हे मानव उठकर्म कर सत्कर्म कर परिश्रम कर और ईश्वरका स्मरण कर तो कर्म प्रधान विश्व रचिराखा जो जस करही सो तस फल जो जैसा करेगावैसा फल उसे प्राप्त होगा यह शिक्षा प्रदचौपाई है वो भी तो है ना हुई है वही जोरामय दूसरी है हो यही वही जो राम रचराखा को कर तरक बढ़ा अलग अलग प्रसंगों कीपर इसका अर्थ यह है कि जब तुम कर्म कर चुको तो जैसे भगवान श्री कृष्ण कहते हैंकर्मण वाधिकारस्ते मा फलेश कदा इसी इसचौपाई का यही अर्थ है कि कर्म करो कर्मकरने के पश्चात फल की जब इच्छा आए तबभगवान पर छोड़ो तो यह चौपाई कहती है कर्मके बाद इसको सोचो कि अब जो तुम कर चुके होउसका परिणाम तुम्हें वही मिलेगा जो हरि नेसोच रखा हो भगवान तुम्हें देना चाहतेहोंगे तुम्हारे किए कुछ लेकिन करने के बादअगर कोई व्यक्ति कर्म ही ना करे और फिरसोचे ऐसा नहीं है तो ऐसे मैं सोचता हूं किएक चौपाई है एयम सवेरे उठो तो यह सोचो किकर्म प्रधान विश्व रचि राखा जो जस करे सतस फल खा कर्म करोगे तो फल मिलेगा रोटीमिलेगी करो कर्म और जब शाम को घर आओ ना तोयह सोच के आओ कि फिर ऑफिस को सिर पर लादके मत आओ कि अरे क्या होगा सोचो मत फिरसोचो मैंने अपना काम कर दिया फल भगवानदेंगे तो फिर यह है हो यही वही जो राम रचराखाजो को करी तरक बढ़ा वही सा कौन अब चिंताकरे आराम से सो जाओग त्रिपा जी आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद है तुलसीदास जी कास्मरण करने के पीछे हमारी यह भावना है किहम ऐसे मनुष्यों के बारे में ऐसे संतों केबारे में और अधिक जाने जिससे हमारा जीवनसमृद्ध होऔर यह जो तीव्र गति से मनोरंजन की तरफभागने वाली जो हमारी वृत्ति है उसको एकऐसा रस का सागर मिले जो ना केवल हमारेजीवन को उन्नत करे बल्कि हमारे आसपास केवातावरण को भी पावन करें समन्वित करें तोऐसी कामना के साथ हम भारत के संतोंके चरित्र को जानने का मनीषियों के साथ जोप्रयत्न करें उस दिशा में तुलसीदास जी केबारे में आज जो चर्चा सारग आपकी उपस्थितिमें हुई आपका बहुत-बहुत आभार है और आप सभीको मंगल कामनाओं के साथ हमारे साथअम